Currency Printing : कई बार लोग आम बातचीत में ये बात बोल देते हैं कि पैसा छापने का अधिकार तो सरकार के पास ही है तो वह अंधाधुंध छपाई कर गरीबी क्यों नहीं खत्म कर देती. कई लोग इसका जवाब जानते हैं, जो नहीं जानते आज हम उदाहरण सहित उन्हें ये बताएंगे कि ऐसा करना संभव तो है, लेकिन ये हमें बर्बादी की राह पर ले जा सकता है. हालांकि, इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एक अपवाद की तरह है. ऐसा क्यों है, इसकी जानकारी भी विस्तार से देंगे.
सरकार अगर करेंसी की असीमित छपाई शुरू कर दे तो यह महंगाई को इतना बढ़ा देगा कि अर्थव्यवस्था ही धाराशाही हो जाएगी. यहां डिमांड और सप्लाई की अहम भूमिका है. मान लीजिए कि सरकार ने खूब करेंसी छापी और मार्केट में उतार दिया. अब लोगों के पास पैसा ज्यादा होगा. पैसा बढ़ेगा तो वस्तुओं और सेवाओं की मांग भी बढ़ेगी. अचानक बढ़ी इस मांग के लिए मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री और सेवा क्षेत्र तैयार नहीं होगा. अब जो स्थिति बनेगी वह होगी मांग ज्यादा और सप्लाई कम. इससे जो लिमिटेड सामान है उसके दाम आसमान छूने लगेंगे. नतीजतन पैसे की वैल्यू तेजी से नीचे गिरेगी और महंगाई इतनी बढ़ जाएगी कि उसे संभाल पाना लगभग नामुमकिन हो जाएगा. हालांकि, भारतीय करेंसी अगर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए स्वीकारी जाने लगती है तो परिस्थिति बिलकुल बदल जाएगी.
जिम्बाब्वे हालिया उदाहरण
1990 के दशक से शुरू आर्थिक सुधारों के गलत साबित हो जाने के बाद 2008 तक जिम्बाब्वे में महंगाई आसमान छूने लगी. वहां की सरकार को लगा कि अगर नए करेंसी छापकर लोगों में बांट दी जाए तो उन्हें कुछ राहत मिलेगी और वह आराम से सामान खरीद सकेंगे. करीब 80 लाख करोड़ रुपये छापे गए. नतीजा ठीक उसके उलट हुआ जो सोचा गया था. लोगों के हाथ में पैसा आते ही मांग कई गुना बढ़ गई जबकि आपूर्ति की कमी पहले से ही थी. हालात ये हो गए कि बच्चे हाथ में करोड़ो जिम्बाब्वियन डॉलर लेकर दुकानों पर ब्रेड खरीदने जाते थे. उनके लिए उस पैसे की कीमत उतनी ही जितनी भारत में किसी बच्चे के हाथ में 10-20 रुपये की होती है. जिम्बाब्वे ने उस समय छोटी रकम वाले नोट छापना छोड़कर 10 ट्रिलियन डॉलर, 20 ट्रिलियन डॉलर इस तरह के नोट छापे थे. जिम्बाब्वे में महंगाई दर 2008 में 231 करोड़ फीसदी बढ़ गई थी.
अमेरिका पर क्यों नहीं लागू होती ये बात
अमेरिका ने कोविड-19 के दौरान पैसों की छपाई बढ़ा दी थी. करीब 3.5 महीने में उसने अपनी बैलेंस शीट को 4.16 लाख करोड़ डॉलर से बढ़कर 7.17 लाख करोड़ डॉलर कर दिया था. अगले कुछ महीने में ये फिर बढ़कर 9 लाख करोड़ डॉलर तक हो गया. यह घटनाक्रम मार्च 2020 से लेकर अप्रैल 2022 तक हुआ. बैलेंस शीट में ही पैसों की छपाई के अलावा देश की अन्य आर्थिक गतिविधियां नजर आती हैं. अमेरिका ने नोटों की छपाई बढ़ाकर की कोविड-19 के दौरान लोगों तक राहत पहुंचाई थी. अमेरिका अतिरिक्त छापे गए पैसे को सरकारी कामों में लगा देता है. इससे महंगाई बढ़ने का कोई खतरा नहीं रहता.
ऐसा माना जाता है कि अमेरिका पहले भी अपने मिलिट्री ऑपरेशंस के लिए इस तरह के कदम उठा चुका है. डॉलर दुनियाभर में स्वीकार की जाने वाली करेंसी है. अधिकांश अंतरराष्ट्रीय व्यापार अमेरिकी डॉलर में ही होता है. सबसे महत्वपूर्ण बात व्यापार करने के लिए विभिन्न देशों को फॉरेक्स रिजर्व डॉलर में ही है. इसलिए अमेरिका बड़ी सहजता के साथ कितना भी डॉलर छाप सकता है क्योंकि अंतत: पूरी दुनिया को व्यापार उसी की करेंसी में करना है. अमेरिका पर फिलहाल जीडीपी के मुकाबले 100 फीसदी से अधिक कर्ज है लेकिन डॉलर चूंकि इंटरनेशनल करेंसी है इसलिए वहां की अर्थव्यवस्था के हिलने का कोई सवाल पैदा नहीं होता.