Langada Aam GI Tag: यूपी में जीआई टैग पाने वाली वस्तुओं की सूची में बनारस का पान सबसे नया है। भारत सरकार के जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री कार्यालय (Geographical registration Registry Office) चेन्नई ने पिछले दिनों ही इन वस्तुओं को जीआई टैग देने का निर्णय लिया है। इससे पहले यूपी में ही महोबा के पान (Mahoba Pan) को भी जीआई (GI) टैग मिल चुका है। हम आपको बता रहे हैं कि जीआई टैग क्या होता है, इसका क्या महत्व है? यह प्रमाणपत्र मिलने से उस वस्तु को क्या फायदा होता है?
फिल्मों में भी चलता है खाय के पान बनारस वाला
भारत में चाहे उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत, पान खाने का चलन सब जगह है। पाकिस्तान में भी पान की धूम खूब है। देश के हर इलाके में पान का बीड़ा बनाने का तरीका अलग अलग है। पान का बीड़ा बांधने की यही खासियत बनारसी पान को देश के अन्य इलाकों के पान से अलग करता है। तभी तो बनारसी पान का जिक्र कई फिल्मों में भी हुआ है। अमिताभ बच्चन की एक फिल्म डॉन में तो ‘खाय के पान बनारस वाला’ गाना भी है।
क्या होता है जीआई टैग
GI का मतलब Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत। जीआई टैग (GI Tag) एक प्रतीक है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है। जिस वस्तु को यह टैग मिलता है, वह उसकी विशेषता बताता है। आसान शब्दों में कहें तो जीआई टैग बताता है कि किसी उत्पाद विशेष कहां पैदा (Production Centre) होती है या कहां बनाया जाता है।
कहां से मिली है मान्यता
जीआई टैग को संसद से मान्यता मिली है। भारत की संसद (Parliament) ने वर्ष 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था। इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशेष वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है। ये जीआई टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में मिलने वाले उत्पाद का दूसरे स्थान पर गैरकानूनी इस्तेमाल को कानूनी तौर पर रोकता है।
जीआई टैग से क्या होता है फायदा
जीआई टैग के जरिये उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है। साथ ही जीआई टैग किसी उत्पाद की अच्छी गुणवत्ता का पैमाना भी होता है जिससे देश के साथ-साथ विदेशों में भी उस उत्पाद के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है। इस टैग से किसी उत्पाद के विकास और फिर उस क्षेत्र विशेष के विकास मसलन रोजगार से लेकर राजस्व वृद्धि तक के द्वार खुलते हैं। जीआई टैग मिलने से उस उत्पाद से जुड़े क्षेत्र की विशेष पहचान होती है।
कैसे मिलता है जीआई टैग
किसी उत्पाद के जीआई टैग के लिए कोई भी व्यक्तिगत निर्माता, संगठन इसके लिए भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के तहत काम करने वाले Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) में आवेदन कर सकता है। इस संस्था की तरफ से उत्पाद की विशेषताओं से जुड़े हर दावे को परखा जाता है। पूरी जांच पड़ताल और छानबीन के बाद संतुष्ट होने पर ही जीआई टैग मिलता है। शुरूआत में जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है। बाद में इसे रिन्यू भी करवाया जा सकता है।
विदेशों में भी मिलता है फायदा
जीआई टैग से विदेशी बाजार में भी फायदा मिलता है। यदि किसी वस्तु को जीआई टैग मिलता है, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में उस प्रोडक्ट की कीमत और महत्व बढ़ जाता है। देश-विदेश से लोग उस खास जगह पर टैग वाले सामान को देखना और खरीदना चाहते हैं। इससे उस क्षेत्र विशेष में कारोबार के साथ-साथ टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलता है। सामान्य शब्द में कहें तो जीआई टैग को इंटरनेशनल मार्केट में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है।
किसे मिला है पहला जीआई टैग
भारत में पहला जीआई टैग दार्जिलिंग की चाय को मिला है। उसे साल 2004 में यह टैग मिला था। उसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्र विशेष की पहचान बन चुके 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। इनमें कश्मीर का केसर और पश्मीना शॉल, नागपुर के संतरे, बंगाली रसगुल्ले, बनारसी साड़ी, तिरुपति के लड्डू, रतलाम की सेव, बीकानेरी भुजिया, अलबाग का सफेद प्याज, भागलपुर का जर्दालु आम, महोबा का पान आदि शामिल है।