इस आलेख को क्यों पढ़ें
- सीता नाम को लेकर क्या आदेश दिया था कुशध्वज ने?
- पश्चिम की ओर बेटियों की शादी क्यों नहीं करते मिथिलावासी?
- सीता की विदाई तक ही क्यों होता है रामलीला का मंचन?
- किस जगह लोग बेटियों का नाम रखते हैं सीता?
सीता या फिर सिया… सुनने-बोलने में कितना प्यारा नाम है। लेकिन, यह प्यारा-सा शब्द मिथिला की लड़कियों के लिए वर्जित है। जिस मिथिला की धरती पर सीता पैदा हुईं, वहां लड़कियों का नाम सीता नहीं रखा जाता। सीता ही क्यों, मिथिला के लोग अपनी बेटियों का नाम मैथिली भी नहीं रखते। और तो और, करीब दो दशक पहले तक मिथिलांचल में लोग अयोध्या का नाम लेने से भी बचते थे। सनातन परंपरा में नहाते वक़्त तीर्थों का नाम लेने का चलन रहा है। लेकिन, मिथिलांचल के लोग अयोध्या का नाम लेने से परहेज करते रहे हैं।
कहा जाता है कि सीता का दुख देखकर उनके चाचा कुशध्वज ने मिथिलावासियों को आदेश दिया कि वे अपनी बेटियों का नाम ना तो सीता रखेंगे और ना ही मैथिली। कुशध्वज का यह भी आदेश था कि एक ही घर में तीन-तीन बेटियों का ब्याह भी मिथिला के लोग नहीं करेंगे।
मिथिला से अयोध्या पश्चिम पड़ती है। अयोध्या में राजा जनक की चार बेटियों का विवाह हुआ, जिनमें से दो को अकारण ही बहुत कष्ट झेलना पड़ा। कुशध्वज ने इसलिए मिथिला की बेटियों की शादी पश्चिम में नहीं करने का निर्देश भी दिया।
मिथिला में राम पाहुन के रूप में पूज्य तो हैं, उनका सम्मान भी है, लेकिन विवाह बाद सीता को बिना वजह ही दुख झेलना पड़ा, इसलिए उनके प्रति मिथिला में किंचित रोष भी है। इसी वजह से विवाह होने तक के राम मिथिला को बहुत प्रिय हैं, लेकिन विवाह के बाद वाले राम विशेषकर राजाराम को लेकर मिथिला में विशेष मोह नज़र नहीं आता।
सीता के जन्म की कथा लोक में प्रसिद्ध है। अकालग्रस्त मिथिला के लिए कहा गया कि अगर राजा ख़ुद हल जोतेंगे तो बरखा होगी और अकाल मिटेगा। राजा जनक ने प्रजा की खातिर हल चलाया। उसी दौरान हल का फल भूमि में गड़े एक घड़े से टकराया। उसी घड़े में एक बच्ची थी। बच्ची का नाम सीता रखा गया। हल में लोहे का जो फल होता है, उसे सीता कहा जाता है। मिथिला में कहा जाता है कि सीता से पैदा होने के चलते जनक जी ने उस बच्ची का नाम सीता रखा।
भूमि से पैदा होने के चलते सीता भूमिजा भी कहलाईं। मिथिला की कन्या होने के चलते पूरा मिथिला उन्हें मैथिली भी कहता है।
राम से विवाह होने के कुछ ही दिन बाद सुकुमारी सीता को नंगे बदन पति के साथ वन में जाना पड़ा। वन में सुकुमारी सीता को 14 साल तक तरह-तरह के कष्ट सहने पड़े। वन में ही रावण ने सीता का हरण किया। उन्हें लंका ले जाकर बंदिनी बनाकर रखा। वहां राक्षसियों ने उन्हें डराया।
सीता की ज़िंदगी की ये घटनाएं यूं तो समूचे समाज को विचलित करती हैं, लेकिन मिथिला को इसका कुछ ज़्यादा ही दर्द है। अपनी बिटिया के साथ घटी ये घटनाएं आज भी मिथिला को परेशान करती हैं।
कथा के अनुसार राम ने राजा की मर्यादा के लिए सीता का त्याग कर दिया। गर्भवती सीता को बिना किसी वजह के ही जंगल जाना पड़ा। जिसका पति चक्रवर्ती सम्राट हो, उसकी पत्नी को राजधर्म के लिए जंगल में रहना पड़े, जिन्हें अपने राजकुमारों को महल में जन्म देना था, उन्हें जंगल में पीड़ा के बीच अपने बच्चों को जन्म देना पड़े, मिथिला इस दर्द को आज भी संजोए है। वह उसे भूल नहीं पाया है।
मिथिलांचल के लोगों को सीता नाम अभिशप्त लगता है। उन्हें आशंका सताती रही है कि अगर उन्होंने सीता नाम रख दिया तो कहीं उनकी बेटियों को अकारण ही जनक दुलारी की तरह दर्द ना झेलना पड़े।
मिथिला की पहचान सीता के साथ ही मधुबनी पेंटिंग के लिए भी है। मिथिला में कहा जाता है कि मधुबनी पेंटिंग का आविष्कार सीता ने ही किया। पिछली सदी में मधुबनी पेंटिंग की मशहूर चित्रकार रहीं सीता देवी। संयोग देखिए कि उनको भी आधी से ज़्यादा ज़िंदगी कष्ट झेलने पड़े। हालांकि बाद में उनकी पेंटिंग की सराहना हुई। उन्हें बहुत सम्मान मिला, लेकिन ज़िंदगी के उत्तरार्ध में।
मिथिलांचल में सीता को किशोरी जी के नाम से ज़्यादा जाना जाता है। उन्होंने जो दर्द झेले, उससे मिथिला कितना आहत है, इसका पता परंपराओं से भी चलता है।
पूरे देश में रामलीला रावण बध और राम के अयोध्या वापस लौटने तक के दृश्य तक होती है। लेकिन, मिथिला में रामलीला का मंचन सीता की विदाई तक ही होता है। चूंकि मिथिला से विदा होने के बाद से सीता का जीवन चैन से नहीं बीता, इसलिए मिथिला उसे जीवन को याद नहीं करना चाहता।
राजा जनक की राजधानी जनकपुर नेपाल में है। जिस जगह पर धनुष यज्ञ हुआ था, वह जगह भी जनकपुर के पास है। वहां की रामलीला में सीता विदाई के बाद दर्शकों के उमड़ते आंसुओं को देख वहां मौजूद सैलानी भी द्रवित हो उठते हैं। जनकपुर में शायद ही कोई जनक दुलारी को सीता के नाम से याद करता हो। लोग उन्हें किशोरी जी या जानकी नाम से ही जानते हैं।
राम का जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को हुआ था और सीता का बैसाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को। पूरे देश में रामनवमी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन मिथिला जानकी नवमी का त्योहार संजीदगी से मनाता है। इसमें किशोरी जी के लिए अटूट श्रद्धा तो होती ही है, सीता की ज़िंदगी के दर्द की अनुगूंज भी होती है। जानकी नवमी को पूरी मिथिला श्रद्धा में डूब जाती है। श्रद्धा और आस्था का यह संगम अब मिथिला के बाहर प्रवासी मैथिल समाज में भी दिखने लगा है।
मिथिला वासियों को इस बात भी मलाल है कि उनकी ही बेटी उर्मिला को बिना वजह 14 वर्षों तक पति सुख से वंचित होना पड़ा। विरह और त्याग की आग में झुलसना पड़ा। मिथिला इसे भी नहीं भूल पाया है।
लेकिन, इसके ठीक उलट एक जगह ऐसी है, जहां सीता के प्रति लोगों में ऐसा अनुराग है कि अपनी बेटियों का नाम सीता रखकर ख़ुद को धन्य महसूस करते हैं।
रावण ने सीता को लंका में अपनी अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा था। मानते हैं कि जिस जगह पर रावण ने सीता को रखा, वह जगह श्रीलंका के नोवारेलिया ज़िले में है। श्रीलंका में उसे सीता एलिया कहा जाता है। सिंहली भाषा में एलिया का मतलब होता है ज्योति।
अशोक वाटिका में रहते वक़्त सीता ने जिस शील और संयम का परिचय दिया, उसे श्रीलंका की लोक परंपरा ने याद रखा है। इसलिए सीता वहां राम से भी ज़्यादा सम्माननीय हैं। वहां लोग अपनी बेटियों के नाम सीते अम्मा, सीता देवी, सीतालक्ष्मी रखते हैं।
सीता पूरी दुनिया में पूज्य हैं। आदर्श पत्नी और मां का जब भी ज़िक्र होता है, सबसे पहला नाम आता है सीता का। फेमिनिज्म के दौर में सीता का सम्मान और बढ़ा ही है। बेशक मिथिला और श्रीलंका में हज़ारों किलोमीटर की दूरी हो, लेकिन सीता के प्रति सम्मान को लेकर दोनों जगहों के भाव का संदेश साफ़ है। संदेश यह कि सीता ना सिर्फ भारतीयता, बल्कि मानवता के इतिहास की आदर्श नारी पात्र हैं।